(PDF) संपूर्ण आदित्य हृदय स्तोत्र पाठ | Aditya Hridaya Stotra PDF

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आज इस पोस्ट मे हम आपके साथ Aditya Hridaya Stotra PDF ( आदित्य हृदय स्तोत्र ) शेयर करणे वाले हे, तो चालीये शुरु करते हे.

आदित्य हृदय स्तोत्र क्या हे? – What is Aditya Hridaya Stotra?

आदित्य हृदय स्तोत्र भगवान सूर्य देव की प्रार्थना है । जो राम और रावण के साथ महायुद्ध से पहले सुनाई गई थी। इस प्रार्थना को महर्षि ऋषि अगस्त्य द्वारा सुनाई गयी थी.

यह पूजन तब है जब आपकी राशि (जन्म कुंडली) में सूर्य ग्रहण लगा हो। इस परस्थिति में आपको अच्छे परिणाम के लिए, नियमित रूप से कर्मकाण्ड (पाठ,व्रत हवन आदि) करने होंगे.

आदित्य ह्रदय स्तोत्र का पाठ नियमित  करने से अप्रत्याशित लाभ मिलता है। आदित्य हृदय स्तोत्र के पाठ से नौकरी में पदोन्नति, धन प्राप्ति, प्रसन्नता, आत्मविश्वास के साथ-साथ समस्त कार्यों में सफलता मिलती है। हर मनोकामना सिद्ध होती है.

सरल शब्दों में कहें तो आदित्य ह्रदय स्तोत्र हर क्षेत्र में चमत्कारी सफलता देता है.आदित्य हृदय स्तोत्र पूजा विधि से अनगिनत लाभ होते हैं। जिसके लिए आदित्य हृदय स्तोत्र के जप, पूजा पाठ हवन और व्रत रखे जाते हैं।

आदित्य हृदय स्तोत्र के फायदे हिंदी मे – aditya hridaya stotra benefits in hindi

कहा जाता है आदित्य हृदय स्तोत्र का नित्य पाठ करने से जीवन के अनेक कष्टों का एकमात्र निवारण होता है। इसके नियमित पाठ से मानसिक कष्टों से मुक्ति और शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है, संपत्ति और स्वास्थ्य की समस्याओं में सुधार होता है। कर्ज से मुक्ति, मुकदमों से छुटकारा नौकरी में सफलता, शत्रुओं पर विजय की प्राप्ति और नियमित धन आने का मार्ग बनता है।, अच्छा वैवाहिक जीवन, विदेश यात्र और अच्छे स्वभाव की प्राप्ति।

Aditya Hridaya Stotra | आदित्य हृदय स्तोत्र संपूर्ण पाठ

ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम् । रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम् ॥॥
दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम् ।
 उपगम्याब्रवीद् राममगस्त्यो भगवांस्तदा ॥॥
राम राम महाबाहो श्रृणु गुह्मं सनातनम् ।
 येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसे ॥॥
आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम् । 
जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम् ॥॥
सर्वमंगलमागल्यं सर्वपापप्रणाशनम् । चिन्ताशोकप्रशमनमायुर्वर्धनमुत्तमम् ॥॥
 
रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम् ।
 पुजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम् ॥॥
सर्वदेवात्मको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावन: ।
 एष देवासुरगणांल्लोकान् पाति गभस्तिभि: ॥॥
एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिव: स्कन्द: प्रजापति: ।
 महेन्द्रो धनद: कालो यम: सोमो ह्यापां पतिः ॥॥
पितरो वसव: साध्या अश्विनौ मरुतो मनु: ।
 वायुर्वहिन: प्रजा प्राण ऋतुकर्ता प्रभाकर: ॥॥
आदित्य: सविता सूर्य: खग: पूषा गभस्तिमान् 
। सुवर्णसदृशो भानुर्हिरण्यरेता दिवाकर: ॥॥
 
हरिदश्व: सहस्त्रार्चि: सप्तसप्तिर्मरीचिमान् ।
 तिमिरोन्मथन: शम्भुस्त्वष्टा मार्तण्डकोंऽशुमान् ॥॥
हिरण्यगर्भ: शिशिरस्तपनोऽहस्करो रवि: ।
 अग्निगर्भोऽदिते: पुत्रः शंखः शिशिरनाशन: ॥॥
व्योमनाथस्तमोभेदी ऋग्यजु:सामपारग: । 
घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवंगमः ॥॥
आतपी मण्डली मृत्यु: पिगंल: सर्वतापन:।
 कविर्विश्वो महातेजा: रक्त:सर्वभवोद् भव: ॥॥
नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावन: ।
 तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन् नमोऽस्तु ते ॥॥
 
नम: पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नम: ।
 ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नम: ॥॥
जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नम: ।
 नमो नम: सहस्त्रांशो आदित्याय नमो नम: ॥॥
नम उग्राय वीराय सारंगाय नमो नम: ।
 नम: पद्मप्रबोधाय प्रचण्डाय नमोऽस्तु ते ॥॥
ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सुरायादित्यवर्चसे । 
भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नम: ॥॥
तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने ।
 कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नम: ॥॥
 
तप्तचामीकराभाय हरये विश्वकर्मणे । 
नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे ॥॥
नाशयत्येष वै भूतं तमेष सृजति प्रभु: ।
 पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभि: ॥॥
एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठित: ।
 एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम् ॥॥
देवाश्च क्रतवश्चैव क्रतुनां फलमेव च ।
 यानि कृत्यानि लोकेषु सर्वेषु परमं प्रभु: ॥॥
एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च ।
 कीर्तयन् पुरुष: कश्चिन्नावसीदति राघव ॥॥
 
पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगप्ततिम् ।
 एतत्त्रिगुणितं जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यसि ॥॥
अस्मिन् क्षणे महाबाहो रावणं त्वं जहिष्यसि ।
 एवमुक्ता ततोऽगस्त्यो जगाम स यथागतम् ॥॥
एतच्छ्रुत्वा महातेजा नष्टशोकोऽभवत् तदा ॥ 
धारयामास सुप्रीतो राघव प्रयतात्मवान् ॥॥
आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्तवान् ।
 त्रिराचम्य शूचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान् ॥॥
रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा जयार्थं समुपागतम् । 
सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेऽभवत् ॥॥
अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितमना: परमं प्रहृष्यमाण: । 
निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति ॥॥
।।संपूर्ण ।।

Aditya Hridaya Stotra PDF Download :

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Source : youtube.com

आदित्य हृदय स्तोत्र के पाठ से क्या क्या लाभ है जल्दी बताइए

मेष- संतान प्राप्ति का लाभ तथा संतान की समस्याओं से छुटकारा मिलता है।
वृषभ- संपत्ति और स्वास्थ्य की समस्याओं में सुधार होता है।
मिथुन- भाई-बहनों से अच्छे संबंध और दुर्घटनाओं से रक्षा के लिए ।
कर्क- आंखों की समस्या से मुक्ति और धन-लाभ।
सिंह – हर प्रकार के लाभ होंगे और सभी प्रकार सभी प्रकार की मनोकामनायें पूरी होंगी।
कन्या – अच्छा वैवाहिक जीवन, विदेश यात्र और अच्छे स्वभाव की प्राप्ति।
तुला – शत्रुओं पर विजय की प्राप्ति और नियमित धन आने का मार्ग बनता है।
वृश्चिक – शिक्षा प्राप्ति के लिए तथा अच्छे भविष्य के लिए।
धनु – पिता सहयोग, ईश्वर कृपा और विदेश यात्रा।
मकर – अच्छा स्वस्थ्य, लम्बी आयु, अचानक लाभ।
कुम्भ – आर्थिक लाभ, अच्छा व्यवसाय वैवाहिक जीवन सुखद।
मीन – कर्ज से मुक्ति, मुकदमों से छुटकारा नौकरी में सफलता।

आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ कैसे करे?

आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ आरम्भ करने के लिए शुक्ल पक्ष के प्रथम रविवार का दिन शुभ माना गया है। इसके बाद आने वाले प्रत्येक रविवार को यह पाठ करते रहना चाहिए। इस दिन सूर्य देवता की धूप, दीप, लाल चंदन, लाल कनेर के पुष्प, घृत आदि से पूजन करके उपवास रखना चाहिए।

Can Aditya Hridaya stotra be chanted at any time of the day?

Yes, you canAditya Hridaya Stotra can be chanted at any time of the day

आदित्य हृदय स्त्रोत पाठ करने से ग्रहों पर होने वाले प्रभाव

ज्‍योतिष में सूर्य की उपासना के लिए आदित्‍य हृदय स्‍तोत्र एक विशेष साधन है जो विशेष परिस्‍थितियों में बहुत ही अचूक कार्य करता है। आदित्‍य स्‍तोत्र का नियमित पाठ करने से आत्‍मविश्‍वास में वृद्धि होती है। व्‍यक्‍ति की इच्‍छा शक्‍ति बढ़ जाती है। उसमें अपनी प्रतिभाओं का अच्‍छा प्रदर्शन करने की ताकत प्राप्‍त होती है।

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